चन्द लम्हें और ठहर जाते


चन्द लम्हें और ठहर जाते 
तो अहसास हो जाता तुम्हे ।
मेरी आँखों की नमी की 
नजर जान पाते तुम .....
कि सोचता हूँ क्यों इतना तुम्हे 
पहचान पाते तुम ....।


कभी सोचना तन्हाई मिले तो ,
कि क्यों करता है कोई परवाह किसी की ,
कि क्यों करता है कोई प्यार 
बेईन्तहाँ किसी से ...जान लेते तुम 
गर चन्द लम्हें और ठहर जाते ...


बेवजह नहीं बढती दिल की धडकन ,
यूँ ही नहीं खोता कोई यादों में अक्सर ...
खोज लेते तुम अपना वजूद मेरी आँखों में 
गर चन्द लम्हें और ठहर जाते .....


मन की उलझन जान पाता मैं भी 
क्यों हर चेहरे में तुझे देखता हूँ ?
सुलझा लेता इस पहेली को 
गर चन्द लम्हें और ठहर जाते ....


हर बार की तरह अधुरी रह गई तलाश ,
कर रहा हूँ इन्तजार वर्षों से ,
मैं नहीं चाहता हमेशा के लिए मिलन तुझसे ...
दूर रहकर तुम्हे सोचना चाहत बन गई मेरी ...
कुछ लऔर जगा पाता है चाहत के जज्बात को 
गर चन्द लम्हें और ठहर जाते .....


 


तारीख: 21.10.2017                                                         मनोज कुमार सामरिया -मनु






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