चुप रहता हूँ

 

बहुत कुछ बोलना चाहता हूं
पर किस हद तक बोलू 
ये सोच कर चुप रहता हूँ।
बेइंतहा मोहब्बत है
पर किस हद तक मोहब्बत करनी है।
ते सोच कर चुप रहता हूँ।


आँखे तुम्हारी किसी सागर से कम नही।
अपनी आँखों से डूबना चाहता हूं।
पर किस हद तक डुबू 
ये सोच कर चुप रहता हूँ।
ये जो जुल्फे है तुम्हारी 
बहुत प्यारी है।
पर किस हद तक प्यार करू
ये सोच कर चुप रहता हूं।


तुम पूछती हो ना की
तुम ज्यादा बोलते क्यों नही।
बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ।
पर किस हद तक बोलू
ये सोच कर चुप रहता हूँ।


तारीख: 17.12.2017                                    विनोद महतो









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