सिगरेट का टुकड़ा


महँगी सस्ती कोई भी
हो सकती हूँ।
सजी सजाई, चुस्त दुरुस्त
सलीके से पैक की हुई।


कहीं कोई कमी नही,
कोई शिकायत का मौका भी नही।
निकाला जाता है मुझे
नयी नवेली दुल्हन की तरह
बड़ी अदायगी के साथ,
फिर जलाया जाता है।
बड़े प्यार से होंठों से
चूमा जाता है।


हर एक कश में मैं
पीनेवाले में समाती
चली जाती हूँ।
दोनों के एक होने का
संकेत देता है
नाक से निकलता धुँआ।
जो ये बताता है कि हाँ,
मैं पीनेवाले में समा चुकी हूँ।


हर कश के साथ
मैं मिटती चली जाती हूँ।
और अंत में एक 
ठूंठ बनकर रह जाती हूँ।
अब मुझमें ना वो स्वाद है।
ना रूप है और ना ही नशा।
बड़ी बेदर्दी से जूते के नीचे
फेंककर मसल दी जाती हूँ।
क्योंकि अब मुझमें
कुछ नही बचा.....
मैं एक सिगरेट का टुकड़ा...
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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