एक अरसे के बाद

 

मैं खुश हूँ युहीं।
पलभर की इस
त्योहार में आज।
एक अरसे के बाद।

उमंगे अभी जवाँ हैं।
मैं खुश हूँ बस
इन में घुल कर।
एक अरसे के बाद।

क्यों ढूंडता है कोई
वजह हर हँसी केा ?
क्यों डरता है कोई
दिल की सहज सी
लहरों से मिल
आजकल?

सहमी हूँ मैं भी पर
लम्हों की उजली ज़र्रों में
बेफिक्र सा बहना है आज।
एक अरसे के बाद।

भूरे से उदासी को
हवा से झटक कर जब 
अचानक उड़ने लगे
पतझड़ के पत्तें,
बस लगा की
ज़िंदा हूँ आज।
एक अरसे के बाद।
 


तारीख: 12.08.2017                                    सुचेतना मुखोपाध्याय




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