गुनाह

अनेक शख्सियतें हैं ,तो नजरिये भी अनेक होंगे ।
क्यों सोचता है ? गुनाह कर आया है
तू तो नारी सम्मान के लिये
कृष्ण बन उभर आया है ।
जिम्मा है हर पुत्र का ये
आज तू पुरुष बन आया है ।

गली गली होता क्यों चीर हरण आज
गर हर बालक रखता तुझ जैसा साहस
ना शोक कर ,स्वीकार ले ,
जो भी सज़ा मिले आज
कि कानून के भी बँधे हैं हाथ ।
चिंतित ना हो ,कातिल का तमगा ले आया है
मेरे मन में तो गर्व ही समाया है ।

आशीष दे रही हूँ पुत्र ,
जेल की सलाखे तेरा हौसला गिरा न पायें
सौ दुर्योधन तू और मार गिराये
साहस बुराई से लड़ने का सदा बना रहे
नारी सम्मान की रक्षा हेतु तू सदा खड़ा रहे ।


तारीख: 05.06.2017                                    निधि सिंघल









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