धूप अभी भी मीठी है
ठंढी हवा कम तीखी है
धरती के हरे आँचल में
फूलों ने होली खेली है ||
फागुन के त्योहारों में
भेदभाव मिट जाता है
रंगों भरी फुहारों में
बस अनुराग रह जाता है ||
पकवानों के खुशबू में डूबा
रसोई खुद पर इ त राता है
मेहमानों की खातिरदारी
और कब वो कर पाता है ||
ढोल के ताल पर थिरकते लोग
संगीत मधुर मिल गाते हैं
मौज मस्ती की इस घरी में
भांग का लुत्फ़ भी उठाते हैं ||