इंसाँ झूठे होते हैं

 

 

इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता

इन होंठों पर भी हंसी होती

गर अपना कोई रूठा नहीं होता।

मैं जानता हूं कि

आंखों में बसे रुख़ को

मिटाया नहीं जाता,

यादों में समाये अपनों को

भुलाया नहीं जाता।

रह-रहकर याद आती है अपनों की

ये ग़म छुपाया नहीं जाता,

सपनों में डूबी पलकों की कतारों को

यूं उठाया नहीं जाता।

इंसाँ झूठे होते हैं

इंसाँ का दर्द झूठा नहीं होता

इन होंठों पर भी हंसी होती

गर अपना कोई रूठा नहीं होता।


तारीख: 07.09.2019                                    डॉ. रूपेश जैन









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