जना चाहे माँ ने मुझे पर अंश तेरा भी मुझमें समाया
माँ ने संभाली घर की कमान तो तूने दुनिया का भार उठाया |
चूं चूं करती, आ रि आ निंदिया जैसी लोरियाँ सुना
जिसने बचपन में एक मधुर स्वपन सा सुलाया ||
लिख रही हूँ आज यह पहली बार कि
एक पिता के महत्तव और बलिदान को हर कोई न समझ पाया |
बचपन से लड़कपन तक सब फरमाइशों को जिसने निभाया
गणित का जोड़-घटाना हो चाहे पहाड़े जिसने कंठस्थ कराया |
रोज़ रोज़ यह चीज़ खत्म हो गयी
ले कर आना बब्बा याद कराया |
गाल पे पड़े नील के निशान को देख मन जिसका घबराया,
फ़ौरन स्कूल जाकर टीचर को जिसने है हड़काया |
शिक्षा की ओर बढ़ते हुए कदम में जिसने प्रोत्साहन दिखाया |
बोर्ड परीक्षा, ट्यूशन हो चाहे कॉलेज का दाखिला या कोई साक्षात्कार
जिसने हर अवसर में साथ निभाया ||
बुनियाद इतनी मज़बूत बनाई कि ये कदम आज भी नहीं हिचकते हैं |
हम बड़े हो गए तो बुज़ुर्ग बनकर दोस्ती का हाथ बढ़ाये खड़े हैं ||
बचपन में जो मूछें हटा देने पर न आते थे पहचान |
आज समय और अनुभव की सफेदी में भी दिखती है वही निश्छल मुस्कान ||
बेटियों को भी बेटों बराबर दिया जिसने सम्मान |
अपने आदर्शों, परोपकार और अनुभवों से जिसने हमें किया धनवान ||
गर्व है इस परवरिश कि बुनियाद पर जिसने जीवन इतना उज्जवल बनाया |
क्या होता है पिता शब्द का अर्थ अंततः आज समझ आया ||