तलाश रही हूँ खुद को जो मैं हूँ
खुद ही अपनी तलाश में लोगों को
मैंने जिन्दगी भर भटकते देखा ।
जिन्दगी के एक लम्हे को
सिर्फ अपने लिए जीने की चाह में
मैंने जिन्दगी को सिमटते देखा ।
बीतती जाये जिन्दगी ये ऐसे
सरकती है हाथों के बीच रेत जैसे
मैंने जिन्दगी को एहसास तीखे मिलते देखा ।
दुनिया में मिले ये तमाम रिश्ते
पल-पल में हैं बनते- बिखरते
मैंने जिन्दगी में दर्द भरते ही रिश्तों को देखा ।
जिन्दगी को दिखे ये जो रंग तमाम
अब और चाहें क्या देखने को
मैंने जिन्दगी को वक्त के संग बदलते देखा ।