ज़िंदगी की राहों में हम इस तरह हारे हैं

ज़िंदगी की राहों में हम इस तरह हारे हैं |
ना तुम ही हमारे हो ना हम ही तुम्हारे हैं ||

सोचा ना था कभी इस तरह जुदाई होगी |
दोनों जुदा होंगे हम ऐसी रुसवाई होगी ||
उल्फ़त की बाँहों में भी कैसे बेसहारे हैं,,,,,
ना तुम ही हमारे हो, ना हम ही .............

ऐसा भी क्या जो सब हमसे रूठ जाएंगे |
झिलमिल-२ करते तारे सभी टूट जाएंगे ||
रिश्तों के हाथों से हम तोड़े गये तारे हैं,,,,,
ना तुम ही हमारे हो, ना हम ही.............

अरमां जवां सभी ऐसे भी दम तोड़ेंगे |
सपने हमारे रबा हमसे ऐसे मुँह मोड़ेंगे ||
आँसुओं से भींगे दोनों नैना हमारे हैं,,,,,,
ना तुम ही हमारे हो, ना हम ही...........

नसीबा हमारा भी इतना क्यूँ छोटा है |
आरज़ू जगा कर हमें  ऐसे क्यूँ लूटा है ||
तन्हाई के साये में जीते जी मारे हैं,,,,,,,,,
ना तुम ही ही हमारे हो, ना हम ही.......


तारीख: 18.08.2017                                    दिनेश एल० जैहिंद









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