जंगल और बगीचा

 

 

जब मन के कच्चे थे,

तो बगीचे भाते थे।

फूल से सजे हुए,

पंक्ति में, रंग-बिरंगे।

तितलियाँ, भँवरे,

एक सुंदर तस्वीर,

जैसे कोई सपना।

 

अब परिपक्व हुए हैं,

तो जंगल खींचता है।

बेतरतीब, उलझा हुआ,

कहीं घना, कहीं खुला।

कोई सजावट नहीं,

कोई दिखावा नहीं,

बस जीवन,

अपने पूरे वेग में।

 

हर पत्ता, हर काँटा,

हर जड़, हर तना,

ज़रूरी है,

एक-दूसरे के लिए।

कोई खरपतवार नहीं,

कोई बेकार नहीं,

सबका अपना स्थान है,

सबका अपना काम है।

 

यहाँ सुंदरता,

सजावट में नहीं,

सहजता में है।

यहाँ सौंदर्य,

नियंत्रण में नहीं,

स्वतंत्रता में है।

यहाँ जीवन,

एक बगीचा नहीं,

एक जंगल है...

असीम, अनियंत्रित,

और सच्चा।

 

जब तुम परिपक्व हो जाओगे,

तो जंगल उगाओगे,

बगीचे नहीं।

क्योंकि तब तुम समझोगे,

कि जीवन,

एक जंगल ही तो है...

और हर खरपतवार,

एक ज़रूरी फूल।

 


तारीख: 24.02.2025                                    मुसाफ़िर




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