कभी सोचा ना था मैंने
दूर तुम इतने चले जाओगे
मुड़कर ना देखो अब तुम
जल गया अब यह गाँव मेरा
समेटने लगता हूँ जब मैं अर्घट इसकी
अंगार बन उठती हैे वे यादें तेरी
तुझे ना सुनती क्या उस पार चीखें इस देहात की
बसाया था जो किसी जमाने में तुमने
गुलज़ार थे वे कभी जो श्मशान बन गए अब।।