कहा था तुमने

कहा था तुमने
भूल जाना मुझे मगर 
मुमकिन नहीं भुलाना तुझे ।
इन्तजार में तेरे सदी 
गुजारूँ तो कैसे ? 


लम्हा- लम्हा ,पल - पल 
तुझे भूलाऊँ तो कैसे ? 
जब भी होता हूँ तन्हा 
तो कलेजे में टीस सी उठती है 
चुभन सी होती है 
मेरे सीने में 
जख्म दिखे तो दवा करुँ,
ऐसे दर्द का क्या करुँ ?


नींद कोसों दूर
 हो गई है आँखों से
घडी की टिक - टिक 
मेल खाती है साँसों से ,
पल - पल महसूस कर 
रहा हूँ धड़कन को,
धक - धक से उठती 
तड़पन को ......
कितना प्यारा आसमाँ 
टिमटिमाते तारे  ,
शाँत शहर 
निशब्द सारे नजारे ।


आसमाँ को धरा 
चूमने का गुरूर है
मगर क्षितिज मुझसे
कोसों दूर है ,
चाँद बढ़ रहा है 
आसमाँ में अपनी गति से ,
अजीब सी खामोशी 
चारों ओर है छितराई ,
बेचैन कर रही है मुझे 
पेड़ो की मौन परछाई ....
 घड़ी की मद्धिम- मद्धिम 
चलती सुईयों को देखता रहूँ ,
तुम न लौट आओ, सोचता हूँ
तब तक सोया रहूँ ....
स्वप्न  में ही आज तुमसे 
मिलना चाहता हूँ ,
तेरे साये में चन्द अर्से 
गुजार देना चाहता हूँ ....          


 आजकल घर जल्दी लौटने 
का “ मनु ” मेरा मन नहीं होता ,
 तेरे होने और नहीं होने का फर्क
शायद मैं पहले समझ पाता ...
उजाला नहीं है अर्से से 
मन कमरे में ,
मकड़ियों ने जाले बुन लिए हैं 
बेतरतीब यहाँ वहाँ इसमें ....


अपने ही घर में 
अजनबी सा लगता हूँ
देर अँधेर सबके सोने पर
 घर लौटता हूँ ....
मन में जो बात है
 किससे बयाँ करूँ 
मुखौटा लगाए बैठे हैं
 सब अपनेपन का ,
सोचता हूँ तन्हाई संग
 जिन्दगी जीया करूँ.....


एक पल कल्पना का 
सुन्दर संसार बनाकर ,
अगले पल उसे मिटा दिया करूँगा 
रेत पर खिंची लकीर की तरह ...
मगर नहीं करूँगा 
फरियाद तुझसे मिलने की ,
जी लूँगा तेरे बगैर
 तेरे मीठे अहसास के साथ ..
निभाऊगाँ तुझसे किया 
अपना आखिरी वादा ,
करूँगा कोशिश 
ताऊम्र भूलने की तुझे.....
याद है मुझे कहा था तुमने 
कि भूल जाना मुझे.........
      कहा था तुमने ......
       


तारीख: 21.10.2017                                     मनोज कुमार सामरिया -मनु









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