कहते हो सब कुछ तुम्हारा मगर
तुम ही न मिल सके तो 'सब कुछ' का क्या फ़ायदा,
पास रहकर भी तुम पास होते नहीं
ऐसी कुर्बत से लें अब हम क्या ज़ायज़ा,
तुम से शुरू तुम पर ही हो ख़तम सब
एकतरफ़ा निसबत का है ये क्या क़ायदा,
खोये रहते हो कौन सी दुनियादारी में तुम
छोड़ दुनिया को हम से कभी करो कोई वायदा
कहते हो सब कुछ तुम्हारा है मगर
तुम ही न मिल सके तो 'सब कुछ' का क्या फ़ायदा,