लोग कहते हैं हमें,
भूल जाने उस जगह को...
अरे...!! ऐसे कैसे भूल जाएं...,,
वहाँ बचपन बीता है हमारा,
उन गलियों में खेलते हुए...
न जाने कितनी बार ठुड्डी फूटी है हमारी,
कैसे भूल जाएं उस मकान को...
जो कभी हमारी चंचलता का प्रतीक हुआ करता था ,
उस बाज़ार को...
जिसकी सौंधी सी महक और लौंगलाते का स्वाद...
अक्सर हमें आकर्शित करता था...।
पर एक विश्वास है हमें ,
हम वहाँ ज़रूर लौटेंगे ,
और उस मकान में सुकून से बैठकर...
अपने बचपन को फिर से जीने की कोशिश करेंगे,
निकल पड़ेंगे उस बाज़ार की ओर...
तलाशने बचपन के उस मीठे स्वाद को,
और संजोएंगे हर उस याद को...
जो हमारे बचपन से जुड़ी होगी,
आखिर बचपन बीता है वहाँ हमारा....।।