यह कैसा युग है जहां मां पुत्र को गंगा में बहाती है और वाह री!! ममता स्वार्थ की खातिर फिर अधिकार जताती है।
क्या कोई कर्तव्य निभाया तूने???
जो अब अधिकार दिखाती है ,तेरे जैसी मां ही शायद कुमाता कहलाती है।
मैं सूत पुत्र , राधा का बेटा, तुझको क्या दे पाऊंगा ?
प्राण बचे हैं देह में केवल मांगे तो दे जाऊंगा।
मात पिता की मांगी भिक्षा से , गर अर्जुन जीत भी जाएगा ,
इतिहास भी उसकी इस विजय का केवल मखोल उड़ाएगा।।
पांच पुत्रो की माता तो तू सदैव कहलाएगी , मैं या अर्जुन किसी एक की मृत्यु का शोक मानेगी।
मुझे तो तू पहले भी मार चुकी , वो तो गंगा ने बचाया था ,
ना आवश्यकता कहने की तूने मुझसे झूठा प्रेम जताया था।।
कर प्रार्थना प्रभु से ,
सिंदूर सुभद्रा का रह जाए,
चाहे लाल राधा का उसके पास ना रह पाए ।
यमलोक मे जाके कहना यम से
मै पांडव की माता थी , ममता का पाठ ना सीखा मैने , मैं कूटनीति की ज्ञाता थी ।
उसके रथ पर कान्हा हैं क्या उनपर भी विश्वास नहीं ???
योद्धा की जान मांगना क्या वीरता का उपहास नहीं ?
चाहे जीत भी जाए अर्जुन हर्ष वो कैसे मनाएगा ??
इतिहास में , हर युग में , कर्ण का नाम अर्जुन से पहले आएगा।।।।