तेरे बैगर भी इस जिन्दगी को जी लेता ,
नहीं रहता कोई गिला उम्र भर ......
नहीं सताती मुझे मेरी मुहब्बत की नाकामी ,
सोचता नहीं तुम्हें जाग -जाग कर रात भर ...
कि काश तुम एक बार पलटकर देख लेती ....
मैंने कब कही था कि मैं प्यासा हूँ तेरे बदन का ,
रोक लेता उँगलियों की हरकतों को तुम इशारा तो करती ।
तुम सामने रहो मैं देखता रहूँ यही तो चाहत थी मेरी मगर....
तेरे चेहरे की मासुमियत कब बेरुख़ी में बदल गई
बार - बार कचोटता दिल को तेरा इस कदर जाना
कि काश .. तुम एक बार पलटकर देख लेती ।
नहीं दोहराना चाहता मैं लैला मजनूँ की वो बातें पुरानी,
जानता हूँ कभी मुकम्मल नहीं हुई हीर राँझा की कहानी ।
चंद लम्हें जो साथ गुजरे वही तो वसीयत है जिन्दगी की ,
जानता हूँ जाना पड़ता है , मगर मुस्कुराते हुए जाती
मैं तो पुष्प विदाई के मयअश्रु नयनों में सजाए खड़ा था ।
कि काश.....तुम एक बार पलटकर देख लेती .....
नहीं होता इतना दर्द जो आज मुझे महसूस हुआ है,
नहीं करता मैं इन्तजार आज तक यूँ घर को सजाने का ।
तब से बिखरा पड़ा है बेतरतीब तेरे इन्तजार में ,
कैसे यकीं करूँ कि कुछ कमी रह गई मेरी पाक मुहब्बत में,
पूरी हो जाती आरज़ू चिराग़ जलाने की अँधेरा बढ़ने से पहले ...
कि काश तुम एक बार पलटकर देख लेती .....
यह सच है कि ख्वाबों की ये दुनिया है ही हम अदीबों के लिए ,
अरमानों के ये मोती बने ही बिखरने के लिए हैं कागज पर ।
मगर यह भी सच है कि लगेगा दिल
कुछ घड़ी कुछ पल ग़र गुनगुनाओगे इन्हें तन्हाई में ।
किसी ने छुआ तक नहीं इन्हें ,धूल की गर्द सी जम गई है इन पर ।
कितने दिनों से बन्द पड़े है ये अनछुए पन्ने मोटी जिल्द में
कि “मनु” काश तुम एक बार पलटकर देख लेती ....
कि काश तुम एक बार पलटकर देख लेती ....।।