कटी उंगली

 

 

कटी उंगली से खाना बनाती मेरी माँ।

लाल पट्टी बँधी थी।

पतली सी।

सफ़ेद पट्टी पर, लाल खून।

 

जैसे-तैसे प्याज़ काटती।

बहुत धीरे-धीरे।

आँखें नम थीं।

शायद, प्याज़ से।

शायद, दर्द से।

 

गरम आलू छीलने में,

दिक्कत होती थी।

बार-बार, उँगली बचाती।

फिर भी, जल जाती।

थोड़ा सा।

 

मैंने कहा, "रहने दो, माँ।"

उसने सुना नहीं।

या शायद, सुनना नहीं चाहा।

खाना तो बनाना था।

 

रोटी बेलती,

एक हाथ से।

दूसरी उँगली,

बस सहारा देती।

कमज़ोर सा।

 

पूछा, "दर्द हो रहा है?"

कहा, "नहीं।"

फिर रसोई में चली गई।

चुपचाप।

 

शाम को, खाना खाया।

सबने।

किसी ने ध्यान नहीं दिया।

कटी उंगली पर।

माँ ने भी नहीं।

 

शायद माँ के लिए,

खाना बनाना,

दर्द से ज़्यादा ज़रूरी था।

हमेशा।


तारीख: 15.02.2025                                    मुसाफ़िर




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