चंद सवालात
कुछ अनसुलझी सी बात
और उनके बीच
घिरता हुआ मैं
अपनी रूह पर पड़े हुए
परदे की तरह
एक नाटक
शुरू करने को उठता जा रहा हूँ .
समझ नहीं पाता साथ कौन होगा
बादलों के उस पार से,
खूबसूरत कोई कल्पना
या इस पार की
कसैली हकीक़त
क्या सपने सच होंगे वो,
जो अब तक देखे हैं
क्या साँसों की जलन
कुछ कम होगी
क्या आँखों में बसा धुआं
पिघलेगा कभी
क्या सिहरन इस बदन की
कभी थम पाएगी
पता नहीं जिंदगी की किताब कौन पढ़ेगा
कौन पढ़ेगा जिंदगी की किताब...
कह नहीं सकता
मगर,
दरवाज़े पर की ठक-ठक से, ये एहसास मुझे भी है
कि कोई है......
कोई तो है ...............