कुछ दर्ज़न आजीवन कारावास

उन चीज़ों के बारे में सोचते हुए 
( जिनके बारे में कोई नहीं सोचता ) 
हम ( शुरुआत के कपड़ो में सजे-धजे )
एक नतीजे पर पहुंचे  

आश्चर्य कि बात है ना,
कि लोग कैसे अज्ञान जन्म लेते हैं,
और आजीवन अज्ञान रह जाते हैं 

सब लोग 
ताउम्र कुछ न कुछ करते रहते हैं 
पर क्या कोई इस कौतूहल के बीच 
समय निकाल कर दो पल जीता है ? 

हमें आश्चर्य होता है 
कि हम आप और वो सभी लोग,
जिन्हे इनसान कहा जाता है 
कितने लापरवाह होते हैं,
हर घड़ी बदलती 
आजीवन कारावास की नयी परिभाषाओं से  

और ये कारावास की सज़ा हमें कोई भगवान 
या अदालत नहीं,
बल्कि हमारे इर्द गिर्द घूमती आँखें सुनाती हैं  
और उन आँखों के कारावास से बचने की 
कितनी ही व्यर्थ कोशिशें करते हैं हम...
ताउम्र  

अब हम सोच रहे हैं  
दिल में बस एक चाह लिए
कि जो हम लिख रहे हैं,
वो इन सभी कारावास की सज़ाओं से हमें आज़ाद कर देगा  
आइये,आप भी साथ में बैठ कर सोचिये  
क्या पता,कब आज़ादी आपके कानों में 
अपना नाम फुसफुसाकर चली जाये...
आइये,सोचते हैं 


तारीख: 09.06.2017                                    राहुल झा









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