कुछ खोया था, कुछ पाया है

ये‌ कविता युवाओं को जीने के लिये प्रेरित करती है। हर किसी के जीवन में कोई ना कोई तजुर्बा होता है, जो जीने की‌ राह दिखाता है। कविता निम्नलिखित है -

कुछ खोया था, कुछ पाया है,
जीने‌ का‌ नया तजुर्बा आया है,
कुछ देखा था ख्वाबों में,
कुछ पढ़ा था किताबों में,
कि मरना क्या होता है,
कि जीना क्या होता है,
चेहरे पर सजाकर हँसी,
आँसू पीना क्या होता है,
तकदीर की लकीरों पर,
चलना क्या होता है,
अंधियारी सी रात‌ का,
ढलना क्या होता है,
मुसीबतों के धागों में,
सब्र के मोती, 
पिरोना क्या होता है,
हँसना क्या होता है,
रोना‌ क्या होता है,
हज़ारों की भीड़ में,
तन्हाई क्या होती है,
साथ देने वालों की, 
परछाई क्या होती‌ है,
रात क्यों ढलती है,
सवेरा क्यों होता है,
'तेरा' क्या होता है,
और 'मेरा' क्या होता है,
ख्वाबों की आड़ में,
अपना बचपन लुटाया है,
उम्र बढ़ी तब पता चला,
कि क्या-क्या गँवाया है,
पर अब खोलकर बाँहें,
ज़िन्दगी को गले लगाया है,
अपने दिल की तिजोरी से,
जीने का हुनर चुराया है,
कुछ खोया था, कुछ पाया है,
जीने का नया तजुर्बा आया है।

 


तारीख: 18.04.2020                                    आशुतोष मिश्रा









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