कुछ घर मिले चहकने को
कुछ पल मिले फुदकने को
यह संसार पाकर भी क्या करना है
मेरी हसरतें मुझसे हैं
मेरी उल्फ़ते मुझसे हैं
मोहब्बत के तराने मुझसे हैं
खामोशी के अफसाने मुझसे हैं
बहारें लगी हैं मुंह मोड़ने
बागों में फूल खिला के क्या करना है
आंसू की लड़ियाँ निकल गई
अँखियों से
दिल की धड़कनों की बैया फिसल
गई थापों की साँसों से
आहिस्ता - आहिस्ता बुलन्द हो रहा है
बेमौसम ज़िन्दगी का पहरा
कभी रेत में धंस रहा है
कभी बर्फ पे फिसल रहा है
वक़्त का पहिया
मौत दे रही पल पल दस्तक
अब जीके क्या करना है।