न ही जानता था तुमको
न ही मानता था तुमको
कभी देखा भी नही था
कभी सोचा भी नही था
फिर उस दिन तुमसे नज़र मिली थी
लोगों को हमारी जोड़ी अच्छी लगी थी
क्या तुम ये सब जानती हो.......!
उस दिन एक आस दिल में जगी
मानो प्रेम का बीज अंकुरित हुआ हो
हर लम्हा तुमको सोचने लगा था
हर अक्स में तुमको खोजने लगा था
न जाने हुआ क्या था
क्या हमारी कभी बात हुई, नही
फिर भी वो बीज पेड़ हो चुका था
क्या तुम ये सब जानती हो.........!
प्यार नज़रो से किया
झगड़ा भी तो नज़रों से
पर किसी बात की कसक थी दिल में
वो थी शायद तुमको खोने की
दर्द भी बहुत था
लेकिन तब तक शब्दों से खेलना सीख गया था
हाँ हाँ शायर बन गया था ।
क्या तुम ये सब जानती हो........!
डर अभी भी है
पर सम्हाल लेता हूँ
लेकिन कब तक हाँ कब तक
ये शब्द दर्द की हद को रोक पाएंगे
शायद पता नही
पर जब तक सांस है ये आस है
कि तुम मिलोगी
और मैं बिरह को छोड़ श्रृंगार लिखूंगा
क्या तुम ये सब जानती हो..........!
मुझको याद भी नही कि कब
कब मैं बिना तुमको सोचे सोया था
और तुम कहती हो भूल जाओ
कैसे कैसे भूल जाऊं तुम्हारी बेचैन नज़रो को
जो मुझे सिर्फ मुझे ही ढूंढती है
मैं जानता हूँ बेड़ियां है पड़ी
तुम्हारे भी हमारे भी
पर इन बेड़ियों को फूलों के
हार में बदलने की कोशिश में हूँ
क्या तुम ये सब जानती हो............!