लेख़नी प्रेम

 

शाम होते ही बेसब्री से
इंतजार रहता है 
कोई तो है जो हमें 
हिचकियों से याद करता है ,

हैरान हूं, क्यूं भाने लगी तूं 
बिजलियां दिल पर क्यूं
गिराने लगी तूं ,

बादल को खुशियां मना लेने दे
एे चॉद मेरी चांदनी को आ जाने दे ,

तेरी यादें घिरी हैं ,पहरों-पहर  
अब आंखों को बरस जाने दे, 
ऐ चॉद मेरी चांदनी को
आ जाने दे ,
न जाने क्यूं ये जर्द सी आंखें 
अब सोती नहीं 
ये प्यार-व्यार की बातें 
मुझसे होती नहीं ,

ना जाने क्यूं मेरी कलम
अधूरी सी है 
ये ख्वाब-व्याव की लेख़नी
अधूरी सी है |
हैरान हूं ,परेशान हूं
पहरो-पहर
ये मेरी धड़कन 
अधूरी-सी क्यूं है 


तारीख: 18.07.2017                                    शिवम् सिहं शिवा









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है