मैं दिवाली क्यों मनाऊँ

जो घोर तम है मेरे मन में ,
आश ऐसी क्यों जगाऊँ
मिटटी के दिए जलाकर ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

झूठी मुस्कान से परेशां 
इस दिल को कब तक मैं बहलाऊँ !!
कोरी खुशियों को दिखाकर ,
'खुश हूँ मैं' ये क्यों दिखाऊं ?
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

अरमान मेरे वो जलाकर 
कर रही घर रोशन अपना
गैर-संग वो कितनी खुश है 
कह दो तो ,
इस बात पर मुह-मीठा कराऊँ !!
पर मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

अन्धकार -रंजित ह्रदय में,
तेरी पूजा अब भी क्यों है !!
मुझको तो नफरत है तुझसे ,
पर दिल को कैसे मैं मनाऊँ ..!
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?

तू तो मेरी है नहीं पर,
दिल को कैसे मैं बताऊँ 
मेरा होके भी तेरा है !
तुझसे वापस कैसे लाऊँ !!
मेरे संग खुश-राज न है ,
मैं दिवाली क्यों मनाऊँ ?
झूठी खुशियाँ किसको दिखाऊं !
खुश हूँ मैं ये क्यूँ बताऊँ !!


तारीख: 10.06.2017                                    आदित्य प्रताप सिंह









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