मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो

मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।
ऊँच-नीच की बुरी धारणा, छोड़ो भी अब जाने दो।।

सबके सब ही उस ईश्वर की, इक जैसी संतानें हैं।
फिर आपस में मतभेदों के, सब किस्से बेमाने हैं।।
नफरत की दीवार गिरा कर, प्रेम ध्वजा फहराने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

मनुज-मनुज के बीच एक, बस मानवता का नाता हो।
हर कोई इस सुन्दर जग में, गीत खुशी के गाता हो।।
प्यार भरे इस सुन्दर जग को, खुशियों से चहकाने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

तेरा-मेरा छोड़ जगत में, जीवन सफल बना लें हम।
प्रेम भरी बगिया में, सुन्दर-सुन्दर फूल खिला लें हम।।
इस सुन्दर बगिया को हमको, खुश्बू से महकाने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

संस्कृति, संस्कार बढ़ाकर, जीवन अपना सरल करें।
अमृतरस बरसायें जग में, कटुता, विष का गरल करें।।
जैसे भी हो जग में, मानवता के पुष्प खिलाने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

ऊँच-नीच का भेद मिटाकर, इक दूजे से प्यार करें।
बैर-भाव का त्याग करें हम, कटुता का संहार करें।।
आपस का सद्भाव बढ़ाकर, मानवता मुस्काने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

रंगभेद और जातिभेद से, मानवता ना दोषित हो।
वर्णभेद मिटाने की कोशिश, सतत् भाव से पोषित हो।।
‘प्रेम’ भाव से सबको संग-संग, गीत खुशी के गाने दो।
मानवता को नूतन जग में, खिलने दो मुस्काने दो।

 


तारीख: 12.08.2017                                    प्रेम कुमार पाल









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