जिंदगी का अनजाना सफर
रास्ता कहे कि चल
बस मंजिलें कुछ ही दूर हैं ।।
देख इस विराने में भी
मैं तेरे साथ हूँ ।
जो बुना है तूने उसी
स्वप्न का यथार्थ हूँ ।
थक नहीं चलता ही चल
देख सामने कि
बस मंजिलें कुछ ही दूर हैं ।।
यह वृक्ष संग पवन के
अजनबी डर से डराते होंगे
न हो व्यथित
यह डर ही तेरा
पहरेदार है ।
तू क्यों व्याकुल कि
बस मंजिलें कुछ ही दूर हैं ।।
हरियाली से अटी
यह पगडंडी
सूखे पत्ते बिछाए
वर्षों से तेरे स्वागत
में सजी हैं ।
धर पग,धीरे मगर
मजबूती से ।
सुन स्वर चलने का
कि तू ही सुन पाएगा ।
जो धुन सजाई है प्रकृति ने ।
मधुर संगीत यह
तू ही गुनगुनाएगा
संघर्ष की स्वर लहरी
यही कहे कि
बस मंजिलें कुछ ही दूर हैं ।।