मेरी जिंदगी है बुला रही
नवगीत अब यह गा रही
नई राह है, है डगर नई
मुश्किलों से अब डर नहीं
रोढें पड़ें हो राह में
कुचलेंगे, अब है फिकर नहीं
जीवन के इस उल्लास में
है हर विपत्ति ह्रास में
जो थमें हुए थे राह में
वो चल पड़े हैं विश्वास में
नवक्रांति फिर निश्चित हुई
हर चेतना अवगत हुई
हारे हुए थे जो भीड़ में
उन्हें जीत कि आदत हुई
किसी स्वप्न से है जगा रही
खुद नींद अब है उठा रही
मेरी जिंदगी है बुला रही
नवगीत अब यह गा रही। "