मुठ्ठी भर जिस्म

हम गा सकते थे,
कुछ युगल गीत,
साथ पढ़ सकते थे,
कुछ कविताएँ,
सीखा सकते थे,
बच्चों को,
पाइथागोरस प्रमेय,
'न्यूटन 'का गुरुत्वाकर्षण,
और कर सकते थे,
आकाश के विस्तार सा प्रेम......
मेरा विश्वास है,
कि नही मिल सकता धरती पर,
इससे भी दुर्लभ कुछ.......
पर तुमने पसंद किये ,
खुद के लिए आधुनिकता के,
"गिरगिटी" सिद्धांत
और परखा प्रेम को,
मिथक भर भौतिक मापदंडों पर.....
तुम आजाद़ हो साथी,
मेरे प्रेम की 'वैतरणी"से......
मैं कामना करता हूँ,
तुम्हें मिल जाये एक दिन,
तुम्हारे दिव्य सपनों का,
मुठ्ठी भर जिस्म....


तारीख: 06.09.2019                                    देव रावत देव









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है