नारी


चार दिवारी में रहे 
दुःख हजार सहे
दिल का दर्द  
कभी ना किसी से कहे||


निरीह है निरर्थक है 
निष्प्रयोजन निष्काम है 
उसकी ही कृति में
होता ना उसका नाम है|| 


दया ममता संवेदना
सब उसकी ही खोज है 
जीवन उसका समर्पित
दुनिया पर वो बोझ है||


जो छोड़कर लाचारी 
लांघ देती चार दिवारी 
पलकों पर बैठाने को
तैयार रहती दुनिया सारी||


रूप उसका मोहिनी 
बातें उसकी मधुरस 
काया देख यूँ लगता 
ज्ञान रहा हो बरस|| 


उससे ही दिन है 
उस से ही रात है 
हर महफ़िल की शान 
उसकी ही बात है|| 
वाह रे नारी 
अजब तेरी लाचारी 
जब जब तू जाती वारी 
दुनिया से तब तू हारी
छोड़ दे जब तू लाचारी 
क़दमों में होती दुनिया सारी


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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