नींद के आगोश में जो हम आ गए

नींद के आगोश में जो हम आ गए
कुछ बिखरे हुए किस्से याद आ गए

राजदां थे वो,जो कल तक जिस हवेली में
जर्जर हवेली देख,पुराने किस्से याद आ गए

हम घुमा करते थे अक्सर,उनकी गलियों में
फिर अब वही पुराने पेड़ से टकरा गए

खड़े हो कर दरवाजें में उनको ताकते रहना
वो पहली बार देखते ही हम कैसे घबरा गए

तुम्हारे घर के वो अक्सर हमारा चक्कर लगाना
वो तुम्हारा हमसे पूछना,और हम यूँ कतरा गए

क्या अब भी वही हैं,वो पुरानी हवेली वहाँ
जहाँ अक्सर बचपन में जा कर सामान बिखरा गए

वो कालेज के दिन,जब सब दोस्त करते थे मस्ती
आज वो हवेली देखकर,पुराने दिन याद आ गए

वही हवेली जो सुनसान अपनी दास्ताँ सूना रही अब
रहते थे वो,जो कल तक होने का अहसास करवा गए

नींद खुली और अब हम घबरा गए
कहाँ थे हम और अब कहाँ आ गए।।


तारीख: 17.03.2018                                    आकिब जावेद









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