मैं हूँ माँ, जग की महिमा भी,
नारी का सुंदर अवतार..
पर कुछ निर्मम हाथों ने
कर डाले कैसे अत्याचार
मुझे निर्भया मुझे दामिनी
बना कैसे ललकारा है
ए समाज के कुंठित राक्षसों
आया अंत तुम्हारा है...
निकल पड़ी हूँ आज क्रांतिमय
सुनकर अस्मिता भंग पुकार
लांघ जाऊँगी आज उन्हें भी
इस युग शिव मानेंगे हार ....