निर्जीव हो गया इंसा

निर्जीव हो गया इंसा 
जलाकर अंत की शमां 
निर्जीव हो गया इंसा ।
घृणा की आग में 
लालच के समंदर में डूब
मनुआ भर नफरत का अंधियारा 
पाप ही पाप देखूं सभी दिशां 
"हे ईश्वर आप हैं कहां 
निर्जीव हो गया इंसा ।


किसी को दहेज का लोभ
किसी ने लिए अबोध कन्या के प्राण 
किसी को धन के घमंड ने घेरा 
मिटता देख धर्म के निशां 
"हे ईश्वर तू है कहां 
निर्जीव हो गया इंसा ।


कोई भ्रष्टाचार में लिप्त 
किसी को कुर्सी का मोह 
कोई शक्ति के नशे में चूर 
हर कोई अपने मन से परेशां 
"हे प्रभु तू है कहां 
निर्जीव हो गया इंसा ।


पुण्य कम हर तरफ पाप के निशां 
मन में प्यास 
आंखो में हवस 
शब्दो में अधर्म,नफरत 
"हे ईश्वर तू ही बता 
जाऊं तो जाऊं कहां 
निर्जीव हो गया इंसा 
जलाकर अंत की शमां ।


तारीख: 26.08.2017                                    देवेन्द्र सिंह उर्फ देव









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