पापा

वो हठ वो गुरुर वो लड़कपन
तुम सब साथ लेकर चले गये
एक ठूंठ रह गया तपते हालात में
तुम बेफ़िक्री की छाँव लेकर चले गये

दिन की उम्मीद रातों की थपकियां
भरोसे का हाथ विश्वास की उंगलियां
धड़कनों की स्वांश मन का विश्वाश
तुम सबअहसास लेकर चले गये

रह गयी काली घनी अमावस की रात
तुम पूर्णिमा का चाँद लेकर चले गये
खिलखिलाती धूप लहलहाती बयार
अधरों का गुलाब लेकर चले गये

अब तुम्हारे संकल्प को उतारकर
अंतस की गहराइयों में
एक प्रतिज्ञा स्वयं से करनी है
जिन लहरों से टकराये थे तुम
उनकी पतवार अब मुझको ही
थामनी है अब मुझको ही


तारीख: 06.06.2017                                    अमिता सिंह









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