विजयनगर का वैभव

Vijaynagar Empire

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विरूपाक्ष को नमन करके
वराहावतार को समरण करके
इस कथा का आरम्भ करता हूँ 
विजयनगर का वैभव बतलाता हूँ

जब भारत में हाहाकार मचा
विदेशी आक्रमणकारियों का
तब तुंगभद्रा के तट पर उठा
वराहावतार का दिव्य झंडा

जब भारतवर्ष में निराशा छायी
तब दक्कन में आई एक क्रान्ति
एक आशा की किरण ले आयी
प्रेरणा दी अँधेरे में दीप की भाँती

यही दीप एक अग्निकुंड बना
इस महायज्ञ का आरंभ हुआ
इस होमाग्नि से जन्मा अभियान एक
जिसमें जन्मे महान हस्ती अनेक

विजयनगर के नाम से
विजयश्री की माला धारण किया
विद्यानगर के नाम से
सरस्वतीपुत्र को शरण दिया

तेनाली राम जैसे महाकवि
कृष्णदेवराय जैसे महारथी
भागवत जैसे अद्भुत नर्तक
हम्पी जैसे शिल्पकला स्मारक

परंतु प्रारम्भ होती है कथा यह
दो पराक्रमी भाइयों की व्यथा से
जिन्हें विफलता मिली बार बार
जिन्हें हार पे हार हुई हर बार

भाईओं को प्रेरित किया एक मुनिश्रेष्ठ तभ
जैसे श्रीकृष्ण ने उपदेश दी अर्जुन को जभ
स्फूर्ति मिली और फिर उठाए तलवार 
और किया शत्रुओं पे प्रहार पे प्रहार

ततः इस प्रकार बना महानगर एक
जिसका संस्कृति में स्थान प्रत्येक
जिससे जन्मा यह महान साम्राज्य
जिसे भूला आज का भारतगणराज्य


तारीख: 18.07.2017                                    धीरज ईदरा









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