___ प्रेम - 1 ___
मैंने तुम्हें उस समय भी प्रेम किया
जब स्थगित थी सारी दुनिया भर की बातें
मैंने तुम्हें
हर रोज प्रेम किया
जिस दिन गिलहरी को
बेदखल कर दिया गया पेड़ से
मैं गिलहरी के संताप के बीच
तुमसे प्रेम करता रहा
जब एक औरत ने अपने अकेलेपन से ऊब कर
बादलों के लिये स्वेटर बुना
उस दिन भी मैं तुम्हारे प्रेम में था
जब इस सदी के सारे प्रेम पत्र
किसी ने रख दिया था ज्वालामुखी के मुहाने पर
उस दिन भी मैंने तुम्हें प्रेम किया
रेलगाड़ियों में यात्रा करते हुए
कई शहरों को धोखा दे कर निकलते हुए
मैंने तुम्हें प्रेम किया बहुत ज्यादा
मैंने खुद से कई बार कहा
यह शहर जितना प्रेम में है नदी के
मैंने तुम्हें प्रेम किया उतना ही |
___ प्रेम - 2 ___
उन दोनों के बीच प्रेम था
पर वह प्रत्यक्ष नहीं था
उन दोनों ने एक दूसरे को कई साल फूल भेजे
एक - दूसरे के लिये कई नाम रचे
वे शहर बदलते रहे और एक दूसरे को याद करते रहे
वे कई-कई बार अनायास चलते हुए पीछे मुड़कर देखते थे
उन्होंने कई बार गलियों में झांक कर देखा होगा
फिर कई सदियाँ बीती
वे दोनों पर्वत बने
पिछली सदी में वे बारिश बने
इतना मुझे यकीन है
इस सदी में वे ओस बने
फिर किसी सफेद फूल पर गिरते रहे ।