बच्चपन बहुत ही प्यारा था ।
वो माँ कि मीठी अवाज़ से सवेरा होना ।
वो पापा कि सवारी पर स्कूल जाना ।
वो स्कूल भी प्यारा, वो दोस्त भी प्यारा ।
वो लौट के हाथों से खाना खिलानें वाला हर कोई ।
वो दिन का सोना भयानक सपनें जैसा ।
वो शाम होते ही खेलना और माँ का पीछे से चिल्लाना ।
वो पापा का इन्तजार रात के खाने पर।
वो इन्तजार भी प्यारा, वो डाट भी प्यारी ।
वो सच्चा बच्चपन पूरा ही प्यारा ।।