एक हक़ीम की तरह पूछा
रूह के जिस्म से मैंने
क्या कराहती है रात भर संवेदनाए तेरी........!
क्या अश्क़ तेरे आज़कल नमकीन ज्यादा हैं.....
एक मर्मराती सी आवाज़ रूह की निकलती है.....
मत कुरेद जख्म मेरे यह महीना बहुत दर्द का है.....
साहित्य मंजरी - sahityamanjari.com