तन्हाई की परछाई को
अकेलेपन की सियाही को
यादों की पुरवाई को
और बीत चूकी छमाही को
चलो आज लिखा जाए.....
आंखों के बह गये काजल को
खामोश हो चूकी पायल को
बरस चूके उस बादल को
मन मयुर पपिहे घायल को
चलो आज लिखा जाए.....
बेजान हुई इक नथनी को
वक्त काल प्रवाह महाठगनी को
धधक खो चूकी अग्नि को
कंही शुन्य ताकती सजनी को
चलो आज लिखा जाए.....
होश खो चुके कंगन को
सूख चूके उस चंदन को
बूझे दिप के वंदन को
सूखी आंखों के क्रंदन को
चलो आज लिखा जाए.....
रोती, बच्चों की किलकारी को
कंही बैठी उदास उस नारी को
खो चूकी लाल उस पालनहारी को
शहीद के पिता के कलेजे भारी को
चलो आज लिखा जाए.....
दिया लाल देश को, उस छाती को
उस पिता के चरण लगी उस माटी को
लगा तिलक किया विदा जिसने जीवनसाथी को
शब्दों की नहीं सामर्थ्य, लिखें इस पाती को
उत्तम चाहे भी तो ना लिखा जाए....
कोई चाहे भी तो ना लिखा जाए.....