ओंस बैठी
पत्तों में दुबककर
कुछ बूंदे दमक रही
सुंदरियों के तन पर
कुछ सजी है मोतियों की
लड़ियों की तरह
बंधे तार पर
बूंदों की बारात देखकर
पीपल वृक्ष भी आशीर्वाद
स्वरुप न्यौछावर कर रहा फुवारें
बूंदों पर बूंदों की
बूंदों को भी भय सता रहा
वे याद करने लगी
अपनी दो पलों की
जिंदगी को
क्योकिं अब सूरज की किरणे
सुबह से ही
तपाने लगी वसुंधरा को
शायद ये बिगड़ते
पर्यावरण का नतीजा हो
ये बूंदे
पुनर्जन्म लेगी
फिर से आने वाले मौसम में
क्योकि प्रकृति ने
इन्हे दे रखी है शक्तियाँ
बूंद -बूँद से सागर भरने की