वो रोटी मांगती रही दरबदर
तूने ना रोटी दी ना जान बचा सका
उसकी इज़्ज़त सरेआम उछाली गयी
तूने देखा, पर कुछ रोक ना सका
तरस गए कई एक निवाले के लिए
तू बरसा तो सही पर खेत में ना बरस सका
बचपन गुजर गया उसका खिलोने के कारखाने में
वो रोया, तू उसे एक खिलौना ना दे सका
और जब ये दुनिया तेरा डर दिखाती है
सोचता हु, इस गुन्हेगार को तू क्या सजा देगा
जब उस बेगुनाह को तू इन्साफ ना दे सका