तुम यूँ उदास न रहा करो

इस ज़िन्दगी की किताब का
हर वरक़ है नयी दास्ताँ
कोई मिल गया किसी मोड़ पे
तो कभी खो गया है कारवाँ
इसी किताब के किसी वरक़ पे
थी अपनी भी एक दास्ताँ
जिसे शायद तुमने भुला दिया
मेरी तक़दीर चीख़ती रही
तुमे हर्फ़ हर्फ़ मिटा दिया
उन्ही हर्फ़ों को फ़िर समेट कर
मैंने लफ़्ज़ों मे आज ढ़ाला है
उसी वरक़ को उसी किताब में
मैंने फ़िर से जोड़ डाला है

ये जो किताब है तुम्हारे हाथ में
इसका एक वरक़ है मुड़ा हुआ
मेरे आँसुओं से लिखा हुआ
है दर्ज़ इसमे ये दुआ
मुझे मिल जाये तेरी हर बला
तेरे लबों पे तबस्सुम रहे खिला
मेहरबाँ रहे तुझ पर ख़ुदा

जब आसमाँ पे चाँद हो
तुम्हारा दिल मगर नाशाद हो
जब आँख ज़रा सी नम लगे
जब खुशी के साथ भी ग़म लगे
जब सफ़र में साथ तन्हाई दे
न दूर तक कुछ दिखाई दे
सब सहारे भी साथ छोड़ दे
मुँह जवानी भी तुमसे मोड़ ले

तब इस किताब के इस वरक़ को
तुम बंद आँखों से पढ़ा करो

तुम यूँ उदास न रहा करो
तुम यूँ उदास न रहा करो

ये ज़िन्दगी सिर्फ़ ग़म नहीं
इसमें खुशी भी इतनी कम नहीं
मुकम्मल तो यहां कुछ भी नहीं
कभी तुम नहीं तो कभी हम नहीं
पर हर रात मुख़्तसर यहाँ
है सामने सहर वहाँ
जब है चाँद तेरा हमसफ़र
बच पायेंगे अँधेरे कहाँ
ये तो वक़्त है गुजर जायेगा
कब ठहरा है कि ठहर जायेगा
रात काली है बड़ी पर
ये तेरे सुख का सवेरा
तेरी किस्मत से बच कर किधर जायेगा

तुम बस ये इरादा करो
एक तबस्सुम का ख़ुद से वादा करो
बहुत रो चुके अब औरों के लिये
अब ख़ुद से मुहब्बत कुछ ज़ियादा करो
अब परवाह ज़माने की करना नहीं
ठोकर लगे भी तो गिरना नहीं
तुम जैसे हो वैसे हीं भले हो
अब किसी के लिये भी बदलना नहीं
बस इतना तू मुझ पे बस कर दे करम
अपने मुझे दे दे सारे तू ग़म
बदल दुंगा मैं इनको खुशियों मे तेरी
वादा है तुझसे ऐ मेरे सनम

मरते रहे हो तुम सब के लिये
थोड़ा ख़ुद के लिये अब जीया करो

तुम यूँ उदास न रहा करो
तुम यूँ उदास न रहा करो


तारीख: 17.12.2017                                    प्रमोद राजपुत









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