..ये शब्द
हां, यही शब्द.. अक्सर
ढक लेते हैं मुझको
आवरण से ,
..कि नितांत असमर्थताओं में भी
जन्मनें लगती हैं
आकांक्षाएं !!
..ये शब्द
हां, यही शब्द.. अक्सर
बचा लेते हैं मुझको
सुरक्षित
प्रत्येक अवरोधों से ,
..कि लौट आती हूं मैं वापस
अपनी कविताओं में
कुछ कहने को नया !!
Namita Gupta"मनसी"
शीर्षक - साथ चले तुम साये की तरह..
सुनों स्वप्न, अज्ञात थे, अव्यक्त से..
थे समाहित कहीं मुझमें ही..सांसों की तरह !!
जीती रही तुमको, सपनों मे ही कहीं..
तुम साथ थे हर पल.. चलते रहे साये की तरह !!
चाहा नहीं कभी कि चांद मैं देखूं..
तुम अंधेरों में भी दिखते रहे तारों की तरह !!
स्याह थे अंधेरे दिन की भी रोशनी में..
उदीप्त किया तुमने..मन उजालों की तरह !!
पहचानती नहीं थी दुनिया के कायदे..
मिले तुम, हां तुम.. मुझसे, मेरी ही तरह !!