इस भौतिक युग के पार,
मेरी दुनिया हो कुछ ऐसी,
जहाँ भूख दर्द हो थोडा कम,
उन लघु मानवों का बोझ, हो जाये कम।
इस भौतिक युग के पार,
मेरी दुनिया हो शांत, सुन्दर, मनोहर…
जहा हर पल आतंकित मन को,
मिल जाये राहत ज़रा ,
जहाँ कठिन वक्त में भी,
मानव चहरा दे मुस्कुरा।
मेरी दुनिया हो ऐसी,
जहाँ बालपन रहे जीवित,
चहके खुशमय चेहरा हर,
जहाँ हर नन्हे पंछी को
शिक्षा के लग जाएँ पर।
इस भौतिक युग के पर,
मेरी दुनिया हो कुछ ऐसी।