सब खो कर कुछ पाने की आस आज भी है,
रोकर फिर मुसकुराने की आस आज भी है।
कुछ ना होकर भी कुछ अलग कर दिखाने की
प्यास आज भी है,
झूठ मे सच को फैलाने की बात आज भी है,
सच तो यह है की इस बकवास की आदत
मुझे आज भी है।
अकेले मे कुछ गुनगुनाने की एक आवाज आज भी है,
यूं ही सब भुल कर चलते जाने की बात आज भी है,
लेकिन कुछ ना भुल पाने का अहसास आज भी है।
सब खोकर कुछ पाने की बात आज भी है,
कुछ अलग कर दिखाने की बात आज भी है।
कुछ नहीं जो पाया फिर भी,
कुछ जीत जाने की प्यास आज भी है।