बारीक-सी दिखती डोरी से तू निर्बल हो
खींचता जायेगा,
उस वीराने से घर में तू एक चिराग-सा
पायेगा,
सोचेगा जितना उठने की तू उतना गिरता
जायेगा,
अभी मोहब्बत शुरू हुई है अभी होश न
आएगा।
भरी भरी सी महफ़िल में कही खुद को
ग़ुम तू पायेगा,
दूर-पास रहने का डर जब तुझको खूब
सताएगा
कहता हूँ चिर शांति में तू मंद मंद
मुस्काएगा
अभी मोहब्बत शुरू हुई है अभी होश न
आएगा।
दिन-दिन जब जीते-जीते पल -पल मरता
पायेगा,
घनघोर निराशा में भी जब कोई आस दीप
दिखलाएगा,
जब तू खुद के परवाने बनने का भेद
समझ न पाएगा
तभी मोह परवान चढेगा होश ग़ुम हो
जाएगा!