तरस आता है सुनकर, एक मां के दिल की व्यथा,
कितनी शर्मनाक है हमारे देश की न्याय व्यवस्था,
जग जाहिर है धरती पर, कितना बड़ा था पाप हुआ,
वर्षों बीत गए फ़िर भी इंसाफ़ अभी तक नहीं हुआ,
ना जाने क्यों अपराधियों को, मिल पाती नहीं सज़ा,
नारी के सम्मान की देखो हो रही यह कैसी दुर्दशा,
वर्षों तक कोर्ट के चक्कर लगाना है बहुत बड़ी सज़ा,
बिना किसी कुसूर भुगत रहा परिवार इतनी बड़ी सज़ा,
एड़ी चोटी का जोर उस अभागन का परिवार लगा रहा,
अपराधियों के हितेषियों से, वह बार-बार टकरा रहा,
मानव अधिकारों की दीवार, बार-बार बीच आ जाती,
और फांसी गुनहगारों की, हर बार ही टाल दी जाती,
ले कानून का सहारा, जो चाह रहे जान बचाना आज,
उन बलात्कारियों के, निर्दोष के रक्त से रंगे हैं हाथ,
जता रही अदालत, कानून सच में अंधा बहरा होता है,
ना बेगुनाहों के आंसू दिखते, ना उनकी दलीलें सुनता है,
मर चुकी बेटी जिनकी, वह जीते जी हर रोज़ मर रहे हैं,
इंतज़ार है इंसाफ के पलों का, जो तारीख़ों में ढल रहे हैं,
देर ना हो जाये कहीं अंधेर ना हो जाये, हौसला ना टूट जाये,
मानव अधिकारों के बखेड़े में, मानवता ही न छूट जाए,
इंसाफ़ की राह तकते-तकते, मां की दुनिया न छूट जाये,
इतिहास के पन्नों में, एक और काला पन्ना ना जुड़ जाये,
यदि इस बार नारी हार गई, तो जीत नहीं फ़िर पाएगी,
अभी नहीं तो कभी नहीं, बात सत्य अवश्य हो जाएगी।।