अकर्मण्यता

ये तुम्हारी जड़ता 
तुम्हारी अकर्मण्यता 
एक दिन उत्तरदायी होंगी 
तुम्हारे ह्रास का  
और 
कठघरे में खड़ी होंगी 
और 
जवाब देंगी 
सृष्टि के विनाश का 

परिस्थतियाँ खुद नहीं बदल जाती हैं 
या 
सम्भावनाएँ यूँ ही नहीं विकसित हो जाती हैं 
पूरी की पूरी 
एक नस्ल 
एक पीढ़ी को 
अपनी आहुति देनी पड़ती है 

और 
तैयार करनी पड़ती है 
अगली पीढ़ी के लिए वो संस्कार 
जिनके हम कुपोषित है 
और 
पैदा करनी पड़ती हैं संस्कृति की फसल 
जिसे हम रौंदते जा रहे हैं 
और 
नियंत्रित करना पड़ता है 
खुद के अभिमानों को 
जिसने तय कर दी हैं हमारी क्षमताएं 
जिससे आगे हम सोच नहीं पाते 
समझ  नहीं पाते 
और 
बिलबिलाते हैं किसी कीड़े की तरह 
एक रोज़ यूँ ही घुटन से मर जाने के लिए 

हम दोषी है 
अपनी अगली पीढ़ी के 
जिसका भविष्य हम खा चुके हैं
जिसकी नसों का खून तक पी चुके हैं
और  
जिनके साँसों में हम ज़हर खोल चुके हैं 
 


तारीख: 07.09.2019                                    सलिल सरोज









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