थक गया था मैं पलंग पर लेट गया, लेटे लेटे मैं यूंही कहीं खो गया।
तभी दस्तक द्वार पर ज़ोर से बोली,मैं उठा और जाकर संकली खोली।
चलो जल्दी चलो तुम्हें तुम्हारी माँ ने है बुलाया,
तुम रास्ता भटक न जाओ इसलिए, मैं हूँ तुम्हें यहाँ लेने आया।
तुम कभी आए नहीं पर आज चलना है, भटक गए हो रास्ता पर अब संभलना है।
मैं चप्पल पहनकर उनके साथ हो लिया, कदम लड़खड़ा रहे थे, साँसे तेज़ चल रही थीं।
तभी हम वृद्धाश्रम पहुंच गये, कहीं से सिसकियाँ आईं, कहीं रुदन लम्बा था,
कहीं ग़ुस्से में दादा थे,कहीं मासूमियत थी छाई,
कहीं इंतजार लंबा था,कहीं खामोशी थी छाई,
कहीं वैसाखी थी धोखे की, कहीं उम्मीद थी छाई।
मैं अंदर आ गया था, तभी मुझे खामोश पड़ी मेरी माँ नज़र आई।
मुझको देखकर उसकी आँख डबडबाई और काँपती आवाज़ ये आई,
मेरा अंतिम समय आ गया है, बेटा मैं घर आना चाहती हूँ।
जिस कमरे में तुम्हें खिलाया था, उसी में जाना चाहती हूँ।
तुम डरो नहीं वृद्धाश्रम तो पास था,अब मैं दूर जा रही हूँ।
लेकिन जाने से पहले अपने घर को निहारना चाहती हूँ।
नहीं चाहती मैं कोई तुम पर उंगली उठाये,
इसलिए अपनी अर्थी अपने घर से निकलवाना चाहती हूँ,
कंधे पर तुम्हारे जाना चाहती हूँ।
नहीं चाहती मैं तुम्हारी औलाद ये सीखे,
इसलिये अंतिम सांसे तुम्हारी बांहों में लेना चाहती हूँ।
क्या पता कल तुम्हारा कैसा आएगा,
इसलिए ये नेक काम तुमसे करवाना चाहती हूँ।
तभी अचानक बेटा कहकर आवाज़ ज़ोर से आई, मैं उठा हड़बड़ाया, कांप रहा था।
तभी मुझे मेरी माँ नज़र आई, दूध का गिलास हाथ में लाई।
मेरे सर पर हाथ फिराई, कोई बुरा सपना देख लिया क्या भाई।
मैं संभला और सोचा ये तो सपना था।
नहीं माँ तू साथ है मेरे ,तो दिन रात मेरे हैं, तेरी गोद में सर रखता हूँ तो सुख साथ मेरे हैं।
धिक्कार है उनपर जो ये कदम उठाते हैं, शर्म आती है उनपर जो ये कदम उठाते हैं।
माता पिता को प्यार दो सम्मान दो, उनकी बांहों में पले हो,
उनको अपनी बांहों में ही अंतिम विदाई दो,उनको अपनी बांहों में ही अंतिम विदाई दो।