बचपन

झूम उठता हूँ, खिल उठता हूँ, 
तो कभी भर आती है आँखे।
जब याद आता है बचपन।

वो बचपन जो नहीं भूलूंगा मै , 
चाहे हो जाय मेरी अवस्था पचपन।

पापा की साइकिल पर बैठने में लगती थी मौज,
अब अपनी कार ड्राइव करना भी लगता है बोझ।

वो बाते वो यादे याद आती है रोज ,
की माँ से कहता था मै छुप गया हूँ आ मुझे खोज।

गुल्लक के सिक्को की आवाज आज भी गूंजती है खन खन,
भर आती है आँखे, जब याद आता है बचपन।

वो बचपन जो नहीं भूलूंगा मै
चाहे हो जाय मेरी अवस्था पचपन।

दस रूपए इकठ्ठा करने पर जो लगती थी अमीरी
अब अकाउंट में कितने भी शून्य बढ़ जाय, न लगती वो कभी भी।

बचपन के दोस्तों सा अब ना कोई करीबी, 
मतलब से सब मतलब रखते मिलते अक्सर फरेबी।

नादान थे तो खुश थे, अब रहती है हर पल कोई उलझन,
भर आती है आँखे, जब याद आता है बचपन।

वो बचपन जो नहीं भूलूंगा मै
चाहे हो जाय मेरी अवस्था पचपन।


तारीख: 15.10.2017                                    शुभम सूफ़ियाना









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